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Archive for अगस्त, 2008

‍जीवन पथ हो सुखद या दुखद जीना प्यार से
हर दिन एक सा नहीं होता यह बात जान ले

जीवन पथ पर डटकर हो तत्पर बढ़ना पथिक
मंजिल सदा उसे मिलती जो होता दृढ़ निश्चयी

लक्ष्य निर्धारित मन और मेहनतकश तन को
कोई रोक नहीं सकता सफलता सदा सुनिश्चित

समय बड़ा मूल्यवान उसे कैद करना मुश्किल
साथ दौड़ जाये जो प्रतिफल मिलना सुनिश्चित

जीवन का यही मूलमंत्र जो कर ले आत्मसात
कभी ना हारे वो चाहे हो प्रचण्ड विपरीत प्रवाह

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अगले जनम में भी इतनी अच्छी रहे वो…
इतना सा बदल जाये मुझे अपना कहे वो

दुनिया का दर्द हो तो आँसू चाहे बहे वो
जब उस का दुख मिले आँखों में रहे वो

मैं सागर बन जायूं वो लहर नदी की..
साहिल साहिल शाम सहर साथ बहे वो

ये सिफ़त कायम रहे दिल उसका पढ़ सकूँ
कुछ भी ना सुनू मैं कुछ भी ना कहे वो

इस जनम मेरे दिल में है अगले जनम में
दिल में भी रहे वो मेरे घर भी रहे वो

इस बार की मुहब्बत तो मेरी ख़ाता है
जब प्यार करूँ मैं क्यों दर्द सहे वो

उस बात का चाहे मानी कोई ना हो
कभी कानो में मेरे इक बात कहे वो

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कोई रास्ता , कोई मंजिल तोह नहीं,
कोई सागर ,कोई साहिल तोह नहीं,

राह में मिले हो चलते चलते,
ज़िन्दगी में मगर तुम शम्मिल तोह नहीं,

कर दूं दरवाज़े बंद अपने घर के तोह क्या,
दिल की धडकनों पे काबू हासिल तोह नहीं,

यह फैसला मेरा ही है तुझसे मोहाब्बत का ,
यूँ तोह तू मेरी हास्रतों के काबिल भी नहीं,

याद आता है तू हर लम्हा मुझे,
हाँ मगर तुझे भूल जाना मुश्किल तोह नहीं,

एहसास और आरजूएं यह ऊओचती है मुझसे ,
कहीं तू मेरे जस्बातों का कातिल तोह नहीं,

मेरी ज़िन्दगी की पहली मोहब्बत है तू,
मगर तू इसका मालिक तोह नहीं,

यह दागा मज़बूरी है तेरी या फिर,
बेवफाई का कहीं तू कायल तोह नहीं

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सासों की सिसकियों को सुना है मैंने,
चली है मेरी रूह तेरे जिस्म में रहने,

रहने दे तनहा मुझे अंधेरे में,
की आती है तेरी पर्चियाँ वीरानो में मुझसे खेलने,

जिस्म को मेरे तू चैन की नींद सोने दे,
की ख्वाबों में अक्सर निकल जाते है हम दोनों सागर किनारे टहलने,

सदियों से लम्बी हो आज की रात यह मिलकर दुआ कर,
की चली आई हूँ में रात भर के लिए तुझसे बातें करने,

मेरे रब से मेरा मिलन देखागी यह दुनिया बाद में,
बस कुछ दिन दे इ वक़्त मुझे यह जुदाई सहने,

ख़ुशी और गम के बीच एहसासों का यह कैसा मंजार है,
लगे है आज अश्क दीवारों से बहाने,

वोह भी उदास होकर आसमान को ताकता रहता है,
चले आये है उसके कमरे के वीराने मुझसे इतना कहने,

याद आई उसे फिर मेरी ख्वाबों में कहीं,
कबर से उठके आई है मेरी रूह उससे मिलने

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कोई – By Rekha

जिस्म से जान को मांगता है कोई,
रूह चाहती है उसे कितना यह कहाँ जानता कोई,

पल दो पल का तोह नहीं रिश्ता हमारा तुम्हारा,
मुझको लगता था सदियों का है वास्ता कोई,

तेरी हसी में गूंजता था मेरे दरोदों गम का वीराना,
लगता है लिख रहा है खुदा फिर हंसी दास्ताँ कोई,

खली खान्दर है मेरे ख्वाबों का मकान,
दर पे उसके एहसासों का रास्ता ताकता है कोई,

बनके साया में चली उसके साथ हमेशा,
मुझ से मेरी ही पहचान आज पूछता है कोई,

सूख गए है आँखों के किनारे देखो,
न यह होता जो दिल के ज़ख्मो पे हाथ फेरता कोई,

कवरी ख्वाशिओं को मेरी यूँही लूटा किसी ने,
सजाती में भी जो डोली को मेरी सजाता कोई,

दिल के आर्मानो की साँसे निकल दी उसने,
जिसकी सासों की आवाज़ से दिल धड़कता है कोई,

घुट गया है दम मेरे कमरे की दीवारों का,
ज़िन्दगी की तरफ नहीं दिखता अब उन्हें रास्ता कोई,

नींद आती तोह नहीं पलकों को आजकल मेरी ,
पर यह क्या सितम है ख्वाबों में चेहरा दिखता है कोई,

उन पलों से भीग जाता है यादों का दमन,
जिनसे गुजरने पे याद आता है वक़्त बीता कोई,

है मेरे भी जस्बातों में एक कशिश,
दिल के घर में एक उम्र तोह थराता KOI.

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