जिस्म से जान को मांगता है कोई,
रूह चाहती है उसे कितना यह कहाँ जानता कोई,
पल दो पल का तोह नहीं रिश्ता हमारा तुम्हारा,
मुझको लगता था सदियों का है वास्ता कोई,
तेरी हसी में गूंजता था मेरे दरोदों गम का वीराना,
लगता है लिख रहा है खुदा फिर हंसी दास्ताँ कोई,
खली खान्दर है मेरे ख्वाबों का मकान,
दर पे उसके एहसासों का रास्ता ताकता है कोई,
बनके साया में चली उसके साथ हमेशा,
मुझ से मेरी ही पहचान आज पूछता है कोई,
सूख गए है आँखों के किनारे देखो,
न यह होता जो दिल के ज़ख्मो पे हाथ फेरता कोई,
कवरी ख्वाशिओं को मेरी यूँही लूटा किसी ने,
सजाती में भी जो डोली को मेरी सजाता कोई,
दिल के आर्मानो की साँसे निकल दी उसने,
जिसकी सासों की आवाज़ से दिल धड़कता है कोई,
घुट गया है दम मेरे कमरे की दीवारों का,
ज़िन्दगी की तरफ नहीं दिखता अब उन्हें रास्ता कोई,
नींद आती तोह नहीं पलकों को आजकल मेरी ,
पर यह क्या सितम है ख्वाबों में चेहरा दिखता है कोई,
उन पलों से भीग जाता है यादों का दमन,
जिनसे गुजरने पे याद आता है वक़्त बीता कोई,
है मेरे भी जस्बातों में एक कशिश,
दिल के घर में एक उम्र तोह थराता KOI.
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