बसन्त का आना बिद्रोह है
उन सारे फूलोँ का
जो कुचले गए पुष्प बर्षा के लिए
राजाओं के जय जय कारो मे
जो तोड़ लिए गए करने को अर्पण
इंसानो के देवताओं के लिए
बसन्त का आना बिद्रोह है
उन सब पेड़ पौधों का
जिनकी जड़े उखेल दी गई
और बना दी गयी उनकी जमीन पे इमारत
एक दिन वे सारे पेड़
उग आएंगे जमीन से
करते हुये बिरोध का अंर्तनाद
ढक जाएंगी इंसानो के महलें
पेड़ के डालो से
एक दिन उग आएंगे सारे फूल
राजाओं के सिर से ऊपर
और देवता सारे छुप जाएंगे
फूलोँ के वादियों में
एक दिन जय जय कार कि जगह
महकेगी फूलों की खुश्बू
फिर बसन्त मुस्कुराएगा
एक दिन बिद्रोह रंग लायेगा । ।
लेखन :प्रविण कुमार कर्ण
मिति : २०८१-०१-२० (बि. स.)
Date : 02-05-2024 AD
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