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Archive for फ़रवरी 18th, 2008

मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे
इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे

हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेडो मत
हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगे

थोडी आँच बची रहने दो थोडा धुँआ निकलने दो
तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफिर आयेंगे

उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती
वे आये तो यहाँ शंख सीपियाँ उठाने आयेंगे

फिर अतीत के चक्रवात में दृष्टि न उलझा लेना तुम
अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आयेंगे

रह-रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
आगे और बढे तो शायद दृश्य सुहाने आयेंगे

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे

हम क्यों बोलें इस आँधी में कई घरौंदे टूट गये
इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जयेंगे

हम इतिहास नहीं रच पाये इस पीडा में दहते हैं
अब जो धारायें पकडेंगे इसी मुहाने आयेंगे

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इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।

एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।

एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।

निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।

दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।

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विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात!

वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास

अश्रु चुनता दिवस इसका; अश्रु गिनती रात;

जीवन विरह का जलजात!

आँसुओं का कोष उर, दृग अश्रु की टकसाल,

तरल जल-कण से बने घन-सा क्षणिक मृदुगात;

जीवन विरह का जलजात!

अश्रु से मधुकण लुटाता आ यहाँ मधुमास,

अश्रु ही की हाट बन आती करुण बरसात;

जीवन विरह का जलजात!

काल इसको दे गया पल-आँसुओं का हार

पूछता इसकी कथा निश्वास ही में वात;

जीवन विरह का जलजात!

जो तुम्हारा हो सके लीला-कमल यह आज,

खिल उठे निरुपम तुम्हारी देख स्मित का प्रात;

जीवन विरह का जलजात!

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ज़रा- By Rekha

रहती है मेरी रूह जिसके जिस्म में,
कोई उस शख्स को बुल्के लाओ ज़रा,

बहुत roti  है मेरी ख्वाशिशें,
कोई तम्मानो से अपनी इसका जी बेहलो ज़रा,

नमी भर रखी है आसमान ने मेरे दर्द की,
अरे बेजुबान होठों तुम भी मुस्कुराओ ज़रा,

वोह मन रहा है जश्न मेरी उदासी का,
उसके बिना में मर नहीं गई, ऐ सितारों उसे बताओ ज़रा,

अभी अभी सोया है मुझसे रूठ के, नींद टूटे उसकी,
हवों उसकी काबर की मिटटी को हिलाओ ज़रा,

दर्द मेरा एक अरसे से बंद पड़ा है दिल के संदूक में,
वक़्त के मसीहों किसी नए गम से मेरे ज़ख्मों को सहलाओ ज़रा,

मेरी तनहियाँ बट जायेंगी तुम्हारे साथ,
मेरे कमरे के वीरानो तुम भी आज सुर में गाओ ज़रा,

सीने से लगाकर तुम्हे चूम लू,
दीवारों आज मेरे लिए तुम भी आंसू बहाओ ज़रा.

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